भाग ४
२२ जनवरी सन २०२४ का वह पावन दिन
सुखद मंगलकारी और मन भावन दिन
जब देखा पुरे विश्व ने राम को नव मंदिर में
हर्षित हो गई मनगंगा ऐसा अतिपावन दिन
अंत हो गयी अंतहिन प्रतीक्षा
युगों युगों तक होगी समीक्षा
राम अवध के अवध राम की
पुर्ण हो गई मन की सब इच्छा
भाग ४
२२ जनवरी सन २०२४ का वह पावन दिन
सुखद मंगलकारी और मन भावन दिन
जब देखा पुरे विश्व ने राम को नव मंदिर में
हर्षित हो गई मनगंगा ऐसा अतिपावन दिन
अंत हो गयी अंतहिन प्रतीक्षा
युगों युगों तक होगी समीक्षा
राम अवध के अवध राम की
पुर्ण हो गई मन की सब इच्छा
भाग ३
जब कलयुग ने विस्तार किया
असत्य का सत्कार किया
नष्ट होने लगी जब मर्यादा
राम का तिरस्कार किया
विश्वास को अविश्वास दिया
समृद्धि को उपहास दिया
कामी कपटी लोभी मोही सत्ताओं ने
फिर राम को वनवास दिया
अब का वनवास पांच सौ वर्षो था
अंधकार का ये कालखंड संघर्षो का था
बस एक नाम था भारत के पास राम
पुनः गृह आगमन का प्रतीक्षा काल वर्षों का था
भाग २
तब कर्म ने अधिकार लिया
पृथ्वी पर उपकार किया
मर्यादा की स्थापना के लिए
प्रभु ने राम रुप अवतार लिया
जब पुरुषोत्तम ने पुरुषार्थ दिखाया
आतंक को यथार्थ दिखाया
पाप और अत्याचार का दमन कर
विश्व को सत्यार्थ दिखाया
मर्यादा पुरुषोत्तम को जान लिया
जग ने सत्य को मान लिया
फिर राम राज्य नही होगा
पृथ्वी ने भी पहचान लिया
भाग १
एक वनवास तब मिला था
जब लंका में पाप बढ़ा था
धर्म की हानी हो रही थी
चारों दिशाओं में त्राहिमाम मचा था
नारी का सम्मान नही था
मर्यादा का मान नही था
मानवता का ज्ञान नही था
कोई संविधान नही था
नीति नही थी न्याय की
वह प्रतिष्ठा नही थी गाय की
सत्य का आभाव था
रीति चल रही थी अन्याय की
एक नयी कविता आपके साथ साझा करना चाहता हूं आशा है आपको अच्छी लगेगी
राम तुम्हारे नहीं हैं
तुम तो कहते थे काल्पनिक हैं
अयोध्या जन्मस्थली ही नहीं
रावण कोई था ही नहीं
लंका कभी जाली ही नहीं
तुम्हें विश्वास नहीं है इस नाम पर
तुम्हें आस्था नहीं है राम पर
राम गर तुम्हारे मन मंदिर में पधारे नहीं हैं
तो फिर राम तुम्हारे नहीं हैं
तुमने प्रश्न उठाए थे राम के सेतू पर
तुम्हें अनास्था है राम के हेतु पर
अब कह रहे हो राम सब के हैं
अब तक तो वक्त बेवक्त कहते थे
राम भक्तों को अंधभक्त कहते थे
राम गुणों के सागर हैं , अति उत्तम हैं
सर्वोत्तम हैं , पुरुषोत्तम हैं
गर तुमने आदर्श राम के जीवन में उतारे नहीं हैं
तो फिर राम तुम्हारे नहीं हैं
कविता कैसी लगी मुझे अपने विचार व्यक्त जरुर बताइएगा , नमस्कार
एक नयी कविता आपके साथ साझा कर रहा हूं
तुम कहते हो राम काल्पनिक है
तुम कहते हो राम काल्पनिक है
धाम अयोध्या का विस्तार काल्पनिक है
रामसेतु का प्रमाण काल्पनिक है
मां शबरी का सत्कार काल्पनिक है
देवी अहिल्या का उद्धार काल्पनिक है
तुम कहते हो राम काल्पनिक है
पिता के वचनों का रखना मान काल्पनिक है
गुरु के उपदेशों का निरंतर ध्यान काल्पनिक है
संकट में भी पत्नी का निज पति पर अभिमान काल्पनिक है
भाईयों के मध्य वो प्रेम वो सम्मान काल्पनिक है
तुम कहते हो राम काल्पनिक है
हां काल्पनिक है तुम्हारा ये बयान
हां काल्पनिक है तुम्हारा ये विकृत ज्ञान
हां काल्पनिक है तुम्हारा ये पश्चिमी विधान
और तुम कहते हो राम काल्पनिक है
कविता कैसी लगी मुझे अपने विचार जरुर बताइएगा
नमस्कार , आपको महा शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं | महा शिवरात्रि के इस पावन पर्व पर मैने एक कविता लिखने का प्रयास किया है जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं इस यकीन पर की आपको अच्छी लगेगी |
ओम ही प्राण है
ओम कोई आकार नही है
ओम का प्रकार नही है
ओम जैसे साकार नही है
ओम वैसे निराकार नही है
ओम में विकार नही है
ओम ये निराधार नही है
ओम स्वयंभूःविचार ही है
ओम स्वयं आधार ही है
ओम ही अवधारणा है
ओम ही कल्पना है
ओम ही साधक है
ओम ही साधन है
ओम ही साध्य है
ओम ही साधना है
ओम ही प्रलय है
ओम ही विलय है
ओम ही संलयन है
ओम ही विखंडन है
ओम ही स्पंदन है
ओम ही वंदन है
ओम ही अभिनंदन है
ओम ही सजीव है
ओम ही निर्जीव है
ओम ही प्राण है
ओम ही प्राणी है
ओम ही मौन है
ओम ही वाणी है
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
नमस्कार , सर्वप्रथम आपको नवरात्रि एवं विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ | जैसा की हम सब जानते हैं विजयादशमी के दिन शस्त्र पुजा होती है उसी को मध्य में रखकर मैने एक कविता लिखने का प्रयास किया है और बहुत हौसला जुटाकर आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं |
शस्त्र
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वीर का अधिकार है
शौर्य का आधार है
अधर्म का उपचार है
शस्त्र
शांति का विकल्प है
स्वधर्म की ढाल है
अधर्मी पर काल है
शस्त्र
मां दुर्गा का श्रृंगार है
आत्मरक्षा का विचार है
प्रकृति का उपहार है
शस्त्र
मां काली की कटार है
श्री राम का धनुष है
महादेव का त्रिशूल है
शस्त्र
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
नमस्कार , भारत के आजादी का अमृत महोत्सव को केन्द्र में रखकर आज मैने ये कविता लिखी है जिसे मैं आपके जैसे सुधी पाठकों के मध्य पटल पर साझा कर रहा हूं
अमृतकाल
ये स्वतंत्रत अमृतकाल
पुण्य धरा भारत को
प्रदान कर रहे हैं महाकाल
उपहार है हर भारतीय को
अब निश्चय करले हर मन
राष्ट्र की सेवा में अर्पित तन मन
नए संकल्प का उत्साह लेकर
प्रगति पथ पर जुट जाए जन जन
यह राष्ट्र अजेय अविनाशी है
जिसके संस्कृति में काशी
गंगा का अमृत जल जिसका
निवासी जिसका भारतवासी है
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
नमस्कार , कल हमरंग विषय पर यू ही ये कविता लिखी जिसे आपसे साझा कर रहा हूं
वही हमरंग हैं हम , हर रंग हमारा है
वह हरी हरी बिंदी के साथ
गुलाबी चुनरिया ओढ़े हुए
लाल चूडियाँ खनकाती हैं
काली आंखों का बंधन वो
प्रेम जिसका एक सहारा है
वही हमरंग हैं हम , हर रंग हमारा है
कोई काले मीठे अंगूर जैसा
कोई लाल-लाल सेब के जैसा
संतरे के जैसा रसीला कोई
तो कच्चे आम जैसा खट्टा कोई
फल के हैं प्रकार ये सभी
बोलो तुम्हें कौन सा प्यारा है
वही हमरंग हैं हम , हर रंग हमारा है
अलग-अलग है आकारों का रंग
अलग-अलग है विचारों का रंग
अलग-अलग है प्रकारों का रंग
सृजनयोगी सहयोगी हैं हम
हम सब में है वो एक समरंग
हां सृजन रंग ही हमारा सहारा है
वही हमरंग हैं हम , हर रंग हमारा है
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
नमस्कार , मैने ये कविता करीब दो हफ्ते पहले लिखी है जिसे मैं आज आपके लिए यहां प्रकाशित कर रहा हूं यदि कविता पसंद आए तो अपने ख्याल हमसे साझा करें |
मै ने तो निमित्त रचा है
कविताओं के स्वर्णिम युग का
सृजन के सुकोमल सुख का
काल के विकराल मुख का
संसार रुपी अनेकों युग का
मै ने तो निमित्त रचा है
ये सारे के सारे प्रबंध वहीं हैं
उपबंध वही हैं , संबंध वही हैं
वही रस हैं , अलंकार वही हैं
उपमाएं वही हैं , छंद वही हैं
मै ने तो निमित्त रचा है
मेरा ये एक स्वर है जो
पत्थर में जो , पर्वत में जो
मानव में जो , नदीयों में जो
पशुओं में और कंकड़ में जो
मै ने तो निमित्त रचा है
अंकुरण की कल्पना हो
वेदना हो या चेतना हो
बुद्धि हो या अहंकार हो
प्रकाश हो या अंधकार हो
मै ने तो निमित्त रचा है
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
नमस्कार , विश्व भर के समस्त हिन्दी प्रेमीयों को 10 जनवरी यानी विश्व हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ | हिन्दी दिवस के इस अवसर पर हिन्दी को समर्पित मेरी एक कविता देखिए
संस्कृतनिष्ठ है हिन्दी
अंकल-आंट ही बस नही
चाचा-चाची , मामा-मामी है
फूफा-फूफी , मौसा-मौसी है
ग्रैंडमोम-ग्रैंडडैड बस नही
दादा-दादी , नाना-नानी है
मोम-डैड नही माता-पिता है
रिश्तों में और भी घनिष्ठ है हिन्दी
संस्कृतनिष्ठ है हिन्दी
बेलकम नही स्वागतम् है
ये थैंक्यू नही आभार है
मैम-सर नही महोदया-महोदय है
मिस्टर-मिसेस नही श्रीमान-श्रीमती है
ये लकी नही भाग्यवती है
रिश्पेक्टेड नही आदरणीय है
और भी बहुत शिष्ट है हिन्दी
संस्कृतनिष्ठ है हिन्दी
ये पानी नही है जल है
ये धोखा नही है छल है
ये दिल नही है ह्रदय है
ये प्यार नही है प्रेम है
ये हमला नही है आक्रमण है
ये सैर नही है भ्रमण है
शब्दों में और भी विशिष्ट है हिन्दी
संस्कृतनिष्ठ है हिन्दी
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
नमस्कार , जनवरी की सर्दी चल रही है ऐसे मे आपको गर्मी बड़ी याद आ रही होगी या गर्मी से ठीक पहले आने वाली एक ऐसी रितु है जो हर मन को भाती है जी हां मैं वही कह रहा हूं वसंत उसके मौसम की चाहत हो रही होगी तो उसी पर मेरी ये कविता पढ़े और इस पर अपने ख्याल हमसे साझा करें
वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा
ये सर्द कोई रात नही
ठिठुरने की कोई बात नहीं
पाले का भय नही
कल नही आज नही
अब शीत इस पर भला क्या कहेगा
वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा
न असमय रिमझिम फुहारों का भय
न भिगने से बिमारीयों का भय
न बाढ़ जैसे हालातों का भय
विचरण करना होकर निर्भय
अब तो बादल पुर्ण मौन रहेगा
वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा
ग्रीष्म का कहर कौन न जाने
लू को भला कौन ना पहचाने
हाय रे गर्मी हर कोई माने
पर चिलचिलाती धूप न माने
ये बहता हुआ पसीना भी कहेगा
वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
नमस्कार , आंग्ल नव वर्ष 2022 में हम प्रवेश कर चुके हैं इस नव वर्ष में यह मेरी प्रथम कविता है जिसे मैं आपको भेंट कर रहा हूं | मुझे भरोसा है कि मेरी यह कविता आपके मन को भाएगी |
अनादि का कब जन्मदिवस है
वो प्रथम क्षण जब झंकार हुई
स्वर फुटे लय बने राग हुए
कौन सा वो प्रथम क्षण था
ताल लगे आलाप लिए
अब तक ये प्रश्न विकट है
अनादि का कब जन्मदिवस है
माता कौन , पिता कौन
बन्धु कौन , संबंधी कौन
मित्र कौन , शत्रु कौन
शिष्य कौन , गुरु कौन
बंधन मुक्त भाव प्रकट है
अनादि का कब जन्मदिवस है
सूक्ष्म , विशाल जग के निमित्त
गुण , दोषों के निमित्त
सृजन , विनाश के निमित्त
काल , अकाल के निमित्त
वही निरस वही सरस है
अनादि का कब जन्मदिवस है
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी
रोज ढलता है सूरज और मेरी एक प्याली चाय
विश्वास ही नहीं होता मुझको
आप को भी नही होता ना
किसी को भी नहीं होता होगा
आखिर किसी को हो भी कैसे सकता है
कि कोई सूरज नाम का चीज है
जो रोज सुबह जन्म ले लेता है
और कुछ घंटे जीवित रहता है
फिर मृत्यु को हो जाता है
और फिर अगली सुबह जीवन पाता है
यानी ना तो ये पुर्णत: अमर है
और ना ही नश्वर
इसे किसने इस काल चक्र में फंसाया है
किसी मनुष्य ने यक्ष ने गंधर्व ने या के ईश्वर
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
नमस्कार , लगभग हफ्ता भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी
एक महल और मैं
एक महल की छायाचित्र देखकर
स्वयं को उस महल में कल्पना करने लगा
वो सोने के आभूषण वो नौकर चाकर
वो महंगें वस्त्र वो आलीशान विस्तर
बहुत सी लंबी लंबी गाड़ीयां
वो हवाई जहाजों पर सवारीयां
कितने होंगे स्वादिष्ट पकवान
तभी एकाएक वापस लौट आया ध्यान
आज घर में सब्जी क्या बनी है
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी
एक कच्ची मिट्टी का घडा
एक कच्ची मिट्टी का घडा
मुझसे ये कहते हुए रो पड़ा
कि मैं टूट जाउंगा
मुझे विश्वास मैं टुट जाउंगा
उस पक्की मिट्टी के घडे से
बराबर करते हुए
उससे खुद को बेहतर
साबित करने का युद्ध लडते हुए
उसकी आंखों से
अश्रु धारा बहने लगी
और वह अधीर होते हुए
सीसक कर बोला
मैं कहां ये युद्ध लड़ना चाहता हूं
वास्तव में यह युद्ध ही नही है
यह तो मेरा अपना अस्तित्व
बचाने का प्रयास है
मुझे विश्वास है कि मैं नही टुटुंगा
क्योंकि अगर मैं टुट गया
तो खत्म हो जाएगा अस्तित्व
कच्ची मिट्टी के घडों का
लोग यह कहकर नही खरीदेंगे की
कच्चे घडे तो कमजोर होते हैं
ये बहुत जल्दी टुट जाते हैं
और फिर कुम्हार हमें
बनाएगा ही नहीं यह कहकर
ये कच्चे घडे तो बिकते ही नहीं
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी
पंजाब की तो बात ही निराली है
पांच नदिया बहती है जिसमें
वो पावन भूमि जैसे एक थाली है
पंजाब की तो बात ही निराली है
अमृतसर का अमृत सर है
गुरुग्रंथ का यह पावन घर है
गुरुवाणी का प्रभाव सब पर है
भाषा तो मानो शहद की प्याली है
पंजाब की तो बात ही निराली है
भांगडा़ , गिद्दा सब की शान हैं
दसों गुरुओं पर जन-जन को अभिमान है
किसानों की आन खेत खलिहान हैं
लोहड़ी , होली , दशहरा और दिवाली है
पंजाब की तो बात ही निराली है
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी
हिमाचल और हिमालय
हिमाचल और हिमालय
जैसे शिव और शिवालय
शिमला , मनाली कि पहाड़िया
किनौर कि शॉलें कुल्लू की टोपीया
डलहौजी का मोहक पर्यटन है
खेल स्कीइंग और पर्वतारोहन है
प्रकृति के वो अनमोल नजारे
सौन्दर्य से भरपूर नदियों के किनारे
संस्कृति का विसाल संग्रहालय
हिमाचल और हिमालय
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी
लद्दाखी संस्कृति है कितनी महान
लद्दाख को मिल गई अपनी पहचान
पर्वतों पर पला है बौद्ध ज्ञान
एक से बढ़कर एक विद्वान
लद्दाखी संस्कृति है कितनी महान
गोम्पा उत्सव विश्वंभर में प्रसिद्ध है
कितना आकर्षक मुखौटा नृत्य है
यहां काली मां भी पाती सम्मान
लद्दाखी संस्कृति है कितनी महान
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |